Friday, August 19, 2011

तीन हाइकु

हाइकू
(१)
खूब बरसे
विरह में सावन
लिए ये नैन !


(२)
बचपन तो
कुम्हार का है चाक
ज्यूं चाहो  घड़ो !


(३)
सींचा है खूब
मेह ने इन सूखे
दरख्तों को तो !
*******
-सुनील गज्जाणी

23 comments:

सु-मन (Suman Kapoor) said...

sundar haeeku...

सुभाष नीरव said...

सुनील जी, बहुत सुन्दर लगे आपके ये तीन हाइकु। बधाई !

Unknown said...

तीनो हाइकु सुंदर बन पड़े है.

सहज साहित्य said...

खूब बरसे
विरह में सावन
लिए ये नैन !-सुनील जी आपक यह हाइकु बहुत प्रभावशाली है ।काम्बोज

सुधाकल्प said...

प्रथम व दूसरा हायकु भाव तथा शब्द संयोजन की दृष्टि से उत्तम है |सुधा भार्गव

हरकीरत ' हीर' said...

सुनील जी अच्छे हाइकू हैं ...
पर न जाने क्यों ये विधा मुझे आकर्षित नहीं करती .....

Amit Kalla said...

(३)
सींचा है खूब
मेह ने इन सूखे
दरख्तों को तो !

nice one...

इस्मत ज़ैदी said...

bahut sundar !!
dhanyavad !!

ashok andrey said...

priya bhai sunil jee aapke teeno haikoo gehra prabhav chhodne me saksham hai,is vidha men chand shabdon ke madhayam se bahut kuchh keh jaata hai rachnakar, jise aapne badi khubi se nirvah kiya hai, meri aur se badhai sweekar karen.

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब .. इस विधा में लिखना बहुत ही मुश्किल होता है पर आपने इसे आसान कर दिया सुनील जी ... तीनों हाइकू गज़ब हैं ...

सुरेश यादव said...

प्रिय सुनील जी आप के हाइकु वास्तव में अच्छे हैं ,इस लिए कि अर्थपूर्ण हैं .हरकीरत हीर की बात अपनी सोच के निकट लगाती है ,शायद इस लिए कि अतृप्ति छोड़ जाता है हाइकु आप को इन हाइकु के लिए हार्दिक शुभ कामनाएं .

ओम पुरोहित'कागद' said...

जय हो !

सुनील गज्जाणी said...

सुनील जी, कई बार प्रयास किया, लेकिन कमेंट्स बाक्स नहीं खुल पाया...
इसलिए अपनी टिप्पणी मेल से भेज रहे हैं...

आपका प्रयास बहुत अच्छा, असरदार और सराहनीय है.
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

राजेश उत्‍साही said...

प्रिय सुनील जी,

अगर हाइकू इस तरह हों, तो मुझे लगता है ज्‍यादा अर्थवान और गेय होंगे-

खूब बरसे
नैन सावन में
विरह लिए !


(२)
बचपन तो बस
जीवन का है चाक
ज्यूं चाहो घड़ो !


(३)
सींचा है खूब
मेह ने सूखे
दरख्तों को !

सुनील गज्जाणी said...

sharad tailang to me
सुनील जी
हाइकु अच्छे है और रचनाओँ का इंतज़ार है ।
शरद

Anju (Anu) Chaudhary said...

सुनील जी आपने ..हाइकू...में लिखा अच्छा है ....
पर इसमें शब्द और भाव सीमित हो जाते है ......शब्दों के बिना अभिव्यक्ति पर रोक लग जाती है

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

प्रिय भाई सुनील गज्जाणी जी
सर्वप्रथम तो आपको नये ब्लॉग के लिए बधाई !
( लिंक नहीं भेजते तो पता ही नहीं चलता … )

पुरानी भी लगभग सारी प्रविष्टियां देखीं …

प्रस्तुत पोस्ट के हाइकू अच्छे लगे …
हालांकि हीर जी की तरह ही मुझे भी यह विधा प्रभावित-आकर्षित नहीं करती
…इसीलिए काव्य की हर विधा में हज़ारों रचनाएं लिखने के उपरांत भी मैंने कोई हाइकू नहीं लिखा …
अनु जी से भी काफी हद तक सहमत हूं कि - "इसमें शब्द और भाव सीमित हो जाते है ......शब्दों के बिना अभिव्यक्ति पर रोक लग जाती है ।"

और श्रेष्ठ सृजन के लिए मंगलकामना है ।

मुलाकात को लंबा अरसा बीत गया …
मेरी ताज़ा पोस्ट पर आपका भी इंतज़ार है ,
काग़जी था शेर कल , अब भेड़िया ख़ूंख़्वार है
मेरी ग़लती का नतीज़ा ; ये मेरी सरकार है

पूरी रचना के लिए मेरे ब्लॉग पर पधारें … आपकी प्रतीक्षा रहेगी :)

विलंब से ही सही
♥ स्वतंत्रतादिवस सहित श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार

डॉ. जेन्नी शबनम said...

ये दो हाइकु बेहद प्रभावशाली हैं, बहुत पसंद आये...
(१)
खूब बरसे
विरह में सावन
लिए ये नैन !


(२)
बचपन तो
कुम्हार का है चाक
ज्यूं चाहो घड़ो !

बहुत शुभकामनाएं.

उमेश महादोषी said...

सुनील जी

लिंक भेजने के लिए धन्यवाद्. इस ब्लॉग पर उपलब्ध आपकी हाइकु सहित सभी रचनाये पढ़ीं. भाव के स्तर पर आपकी सभी रचनाएँ अच्छी हैं. लघुकथाएं और क्षणिकाएं विशेष पसंद आयीं.

त्रिवेणी said...

सुनील जी

लिंक भेजने के लिए धन्यवाद्.
ये हाइकु बेहद प्रभावशाली हैं
खूब बरसे
विरह में सावन
लिए ये नैन !
हार्दिक शुभ कामनाएं .

किरण राजपुरोहित नितिला said...

बोत प्रभावी छै तीनूं हाइकू ।
इण् विधा पर भी आपरी कलम धारोधार बरसै ।
बोत बधाई

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

सभी कहते
ये हाइकु काइकु?
मन को भाए :))

Dr (Miss) Sharad Singh said...

तीनों ही हाइकु शब्द-शब्द संवेदना से भरे एवं सुन्दर अभिव्यक्ति हैं ...हार्दिक बधाई