Tuesday, August 21, 2012

 तीन कविताएं
 (1) 

एक शब्द नहीं बोली
रख लिया पत्थर
ह्रदय पे
वेदना सब कुछ कह गए
शब्द
आँखों से खीर खीर !


{ २ }
नन्ही बूंदें
अब भी अपना अस्तित्व
दर्शा रही है
टीलों के मुहानों पर
मानों, मुख चूम रही हो
तब तक
जब तक पांवों से अछूती रहे !
{३}
ढेरों
पीपल के टूटे पत्ते
पानी पे यू आलिंगंबध
मानो ,
सहला रहे
मलहम लगा रहे हो
तालाब दिन भर
चिलचिलाती धुप में
कितना जला है बेचारा !
सुनील गज्जाणी

12 comments:

विधुल्लता said...

ढेरों
पीपल के टूटे पत्ते
पानी पे यू आलिंगंबध
मानो ,
सहला रहे
मलहम लगा रहे हो
तालाब दिन भर
चिलचिलाती धुप में
कितना जला है बेचारा !yah kavuta sundar hai...badhai...

रश्मि प्रभा... said...

bahut hi badhiyaa

pran sharma said...

ACHCHHEE KAVITAAON KE LIYE BADHAAEE
AUR SHUBH KAMNA .

sudhir saxena 'sudhi' said...

सुन्दर अभिव्यक्ति. आपको बधाई और शुभकामनाएं.
-'सुधि'

yogendra kumar purohit said...

बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति अंतर मन के सजीव चित्रण की..जय हो.. .

Dr.Bhawna Kunwar said...

Bahut bhavpurn!

रेखा श्रीवास्तव said...

एक शब्द नहीं बोली
रख लिया पत्थर
ह्रदय पे
वेदना सब कुछ कह गए
शब्द
आँखों से खीर खीर !

बहुत सुंदर भावों को शब्दों में ढाल दिया है . आभार !

दिगम्बर नासवा said...

ढेरों
पीपल के टूटे पत्ते
पानी पे यू आलिंगंबध
मानो ,
सहला रहे
मलहम लगा रहे हो ...

भावमय ... गहरी बात इन छोटी छोटी पंक्तियों में ... लाजवाब सुनील जी ...

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

वाह सुनील जी, कितने खूबसूरत अहसास पिरोये हैं आपने...बधाई
ईद की मुबारकबाद के साथ

ashok andrey said...

aapki teeno kavitaon ne achchha prabhav chhoda hai,lekin doosri kavita man ko gehre chhu gaee hai.
badhai.

Anju (Anu) Chaudhary said...

बेहद संजीदे शब्द ...बहुत उम्दा

deepti sharma said...

waah adbhud bahut sunder