Thursday, June 2, 2011

एक शेर

सम्मानिय विद्वजन  ये एक शेर ही  नहीं मेरे जीवन का एक हिस्सा  रहे है ये क्षण  जिस से  मैं  हो कर गुजरा हूँ  जिसे मैं कभी विस्मृत  नहीं सकता !अपने पूज्य पिता जे कि स्मृतियों !
!
ढूंढता वो राख में नहीं कोई सुराग
 
है बीनता  अपने पिता कि अस्थियाँ
 
सोचा के समंदर में इतना बवाल क्यूँ
 
रोया बहुत बाहों में भर वो  अस्थियाँ !
 
सुनील गज्जाणी
 
 

19 comments:

yogendra kumar purohit said...

please come out to this mood and re start your new step of creativity ..
i hope you will do it..
yogendra.

Udan Tashtari said...

भावपूर्ण.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

sach me bhaw se bhara hua...:)

रेखा श्रीवास्तव said...

जीवन में ये दिन सबको देखना पड़ता है और फिर माता पिता ही वो इंसान हैं जो जीवन में एक बार जाने पर फिर कभी नहीं मिलते और रिश्ते तो बनते और बिगड़ते हैं . लेकिन धैर्य से उसका सामना करना ही आपकी विद्वता और गंभीरता की निशानी है. आप बहुत से लोगों के लिए अभी सांत्वना देने वाले होगे तो उस दायित्व को निभाइए जिसे पिता ने आपकेकन्धों पर डाला है.

इस्मत ज़ैदी said...

bhaavpoorn rachna jisne man dravit kar diya

देवमणि पांडेय Devmani Pandey said...

दि को छूने वाले यादगार शेर हैं।

रश्मि प्रभा... said...

udwelit mann ke gahre bhaw

अजित गुप्ता का कोना said...

सुनील जी, आपकी सारी भावनाएं इन चार पंक्तियों में सिमट गयी हैं। बहुत श्रेष्‍ठ।

नीरज गोस्वामी said...

पढ़ कर मौन हो गया हूँ...क्या कहूँ...ऐसे शब्द सिर्फ मौन को निमंत्रण देते हैं...आपके दुःख के साथ हम सब हैं.
नीरज

Dr. Ghulam Murtaza Shareef said...

हम भी तूफां छुपाय बैठे हैं ,
अपनी बारी का इंतज़ार किये |
डॉ. ग़ुलाम मुर्तजा शरीफ - अमेरिका

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

आपने बहुत अच्छे भाव पेश किए हैं सुनील जी
पिताजी को हम सब की श्रधांजलि

vedvyathit said...

eeshwr hi smbl hai

Anju (Anu) Chaudhary said...

सुनील जी .....पिता का जाना और उनकी कमी ...कोई नहीं भर सकता
इस दर्द को बहुत करीब से महसूस करती हूँ ...इस लिए आपके एक एक शब्द का दर्द मेरे दिल से हो कर गुज़रा है

सु-मन (Suman Kapoor) said...

bhavpooran abhivyakti...

सु-मन (Suman Kapoor) said...

bhawuk abhivyakti....

Manav Mehta 'मन' said...

bhawpooran....

pran sharma said...

Aapkee bhavna sab kee bhavnaa hai .

ओम पुरोहित'कागद' said...

भाई सुनील जी ,
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------नमन !
ऐसी पंक्तियों के लिए शब्द नहीं हुआ करते !

ओम पुरोहित'कागद' said...

इस कष्ट से बाहर तो आना ही होगा !
यहीं अटक गए तो भटक जाओगे !
मैं जो हूं गमों का पहाड़ उठाए
मुझे देखो
और अपने गम मुझे दे कर
अपने कम कर लो
यानी जी लो !
जीना तो होगा ही
फ़िर लाचारी क्यूं ?