Monday, October 20, 2014

दीवाली

दीवाली
एक गंठड़ी मिली
मिट्टी से भरी
फटे -पुराने कपड़ो की
कमरे की पंछेती पर पड़ी !
यादे उभरने लगी
खादी का कुर्ता ,
बाबूजी का पर्याय
बेलबूटे की साडी साडी ,
जो माँ को शादी की पचासवीं वर्ष गांठ पर
बाबू जी ने उपहार में दी थी !
चंद उंगल के मेरे जन्म वाले कपडे
माँ के हाथो बने
गुड्डू की गुड़िया
धरोहर सी बनी मेरे घर की ये वस्तुएं
कबाड़ में पड़ी !
यादे , फिर उभार दी ह्रदय पर दीवाली ने
झाड़ -पौंछ , रंगाई -पुताई  बीच !
सुनील गज्जाणी

3 comments:

vedvyathit said...

aap ko dipotsv ki hardik shubhkamnayen

रेखा श्रीवास्तव said...

deepawali kee hardik shubhakamanayen ! bahut dinon ke baad padhane ko mila hai .

अरुण चन्द्र रॉय said...

badhiya kavita diwali par. jyotiparv kee hardik shubhkamna !