Monday, June 25, 2012

 प्रेरक बाते
आज कुछ हट  कर लिखना का मन कर रहा रहा  है .मसलन कुछ प्रेरक प्रसंग कि तरह !
अभी हालही में राजस्थान के वित्त आयोग अध्यक्ष डॉक्टर श्री बी. डी. कल्ला ने कैलाश मान सरोवर कि सपत्निक यात्रा कि यात्रा बेहद ज़टिल होती है ये पढ़ा भी हर सुना भी और चित्रों में देखा भी है श्रे कल्ला बेहद आस्था वादी व्यक्ति है शिव उपासक वे कोई भी धार्मिक आयोजन में प्रतिभागिता का अवसर नहीं छोड़ना चाहते है खैर ... मान सरोवर  यात्रा में अपने ३०/४० सदस्यों वाले दल में वे सबसे वरिष्ठ यात्री थे जैसे बाताया कि जब वे मान सरोवर तालाब के पास पहुचे तो उनकी उसमे स्नान कि इच्छा हुई मगर सरोवर में बर्फ ज़मी देख साथ यातियों कि वैसे ही सासे मानो जाम गयी सब ने मन किया कि सरोवर में बर्फ है पानी बेहद ठण्ड है मत नहाइए मगर वे इस पुण्य को गवाना नहींचाहते  थे इस पावन भूमि और पावन सरोवर .. कितना पुण्य मिलगा ये सोच सरोवर में उतर गए अपने हाथो से बर्फ को किनारे करते .. एक वरिष्ठ यात्री को देख अन्य जवान श्रदालु यात्री धीरे धीरे सरोवर में उतरने  लगे , पवित्र सरोवर में उतरने के बाद जो आंनद जो अनुभूति सभी को हुई वो बया नहीं कि जा रही थी उन सभी से . सभी कल्ला जी का आभार मानने लेगे कि आप के द्वारा हमे ये पुण्य प्राप्त हुआ वर्ना बरफ को देख हम इस अलौकिक आनद से वंचित रह जाते ...इतना ही नहीं कल्ला जी ने तो सरोवर के किनाए एक यज्ञ का भी आयोजन करना चाहा मगर इस बात से कुछ यात्री नाराज़ हुए कि हमे यात्रा करनी चाहिए ना कि यज्ञ ... कल्ला जी , ये भी पावन अवसर गवाना नहीं चाहते थे कि इस शिव भूमि पे हम कोई बिना कोई आहुति दिए चले जाए . कुछ यात्री सहमत हुई कुछ नहीं .. मगर मन में तो सभी के ये इच्छा थी यज्ञ सामग्री साथ ही थी सो हवन वेदी पे पावन अग्नि प्रजव्लित हुई शिव भक्त कल्ला जी ने मन्त्रों से पूरा माहोल और आद्यात्मिक  बना दिया सभी ने आत्मिक आनंद हासिल किया एक रात और सरोवर के सम्मेप रुके .सभी से अहसास किये कि उस पवित्र सरोवर में गहन रात्रि में हर दो दो घंटो से दो सितारे सरोवर में समाते हुए प्रतीत हुए .. अलौकिक दृश्य था ये सभी के लिए ... जब रात को अपने तम्बू में सो कर सुबह उठते तो तम्बू पे तीन तीन अंगुल बरफ ज़मी मिलती . एक ही ये विशेष प्रक्कर का तम्बू सभी दल के लिए होता था .दल को जिस मार्ग से आगे जाना था उस मार्ग में रात को जम कर बर्फ बरसी जब ये दल को पता चला तो सभी सहम गए कि अगर उस मार्ग में हमारी रात्री विश्राम होता तो पता नहीं  क्या होता .. सभी सहम गए थे .. सभी कि ये मानों दशा देख कल्ला जी ने कहा किं मुझे एक अहसास हो गया था शायद भले का आदेश था कि मैं यज्ञ करू और इस बहाने हम सभी यहाँ पड़ाव डाल ले अन्यथा हम कही बर्फ में सोए हो सकते थे ... कल्ला  जी कि ये बात सूं सभी बाव विभोर हो गए और उनके परत अपना कृतज्ञ भाव दिखाने लगे ! दोस्तों ये तो एक प्रसंग कल्ला जी के माध्यम से था ! क अब ऐसा प्रसंग है जो आज आधी शताब्दी के बाद भी नागा बाबा के प्रति नत मस्तक हो जाते है !
एक बात और बताना चाहूंगा कि डॉक्टर कल्ला कैलाश मान सरोवर कि यात्रा करने वाले संभवतः पहले व्यक्ति कहे जाते है !
 नागा बाबा मूलतः बीकानेर ( राजस्थान ) के निवासी थे ये सब कहते है ! बडे बुजुर्ग सभी ये कहते आये है कि जब बाबा कैलाश मान सरोवर यात्रा पे अपने २०/२५ सन्यासी साथियों के साथ चल पड़े , कहते है कि सरोवर के पास पहुचते पहुचते उन्हें भूख लग गयी . नागा बाबा ने सोचा कि आस पास तो ऐसा कोई वृक्ष भी नहीं है जिसके फल तोड़ कर खाल लिया  जाये उनकी तपस्वी दृष्टी विचरण कर ही रही थी कि दूर कही एक रौशनी टिम टिमाती हुई नज़र आई उनके चेहरे पे प्रसन्नता छा गयी . उन्होंने अपने साथियों से कहा कि दूर वहा से धुवा सा उठ रहा है , कोई रौशनी भी जल रही है उधर चलते है . नागा बाबा अपने दल के साथ रवाना हो गए उस तरफ गए तो देखा एक झोपडी के बाहर एक लम्बी घणी  जटाएँ ,दादी ! लम्बे चौड़े कद काठी वाला व्यक्ति तपस्या में लीन था . एक तरफ एक बैल बंधा था तो दूसरी और दो बालक खेल रहे थे , झोपडी के भीतर एक महिला कहना बना रही थी , खाने कि महक से सभी के मुझ में पानी आ रहा था ! मगर कहे क्या .. तभी जटा धारी पुरुष बोला '' क्यूँ भूख लगी है ? चलो खाना खा लो बन ही रहा है ! नागा बाबा मन पे नियत्रण रखते हुए बोले ''नहीं नहीं हमे भूख नहीं है हम तो खा कर आये है "' जब कि पट में तो चूहे खुद रहे थे ! जटा धारी बोले " क्यूँ झूठ कह रहे हो यहाँ से तो दूर दूर तक कोई खाने कि सामग्री नहीं है चलो खाना भीतर बन रहा है भोजन कर ही लो . सभी को भूख तो थी ही बहुत देर हा. ना हाँ ना वाली स्थिती में रहने बाद हामी भर ! सभी खाने पे बैठ गए गृहिणी ने बेहद मान सम्मान के साथ सभी को भहर पेट खाना खिला दिया , खाना भी ऐसा लज़ीज़ था कि तोड़ी ही दर में सभी को नीद आने लगी और और वही सो गए . !
सुबह जब नगा बाबा आदि सभी जब उठे तो सभी तारों ताज़ा महसूस कर रहे थे और आहे कि यात्रा कि मंत्रणा करने लगे , मगर बाबा घूम घूम कर उस झोपडी को ढूँढने लगे मगर वो कही दिखाए नहीं दी ना हो वो जटा धरी , ना बैल ना वो बच्चे और ना हो वो गृहिणी ! बाबा दुविधा में पद गए ... फिर अचानक मुस्कुराते हुए नमन करते हुए बोले '' अब हम यात्रा नहीं करंगे पुनः बीकानेर कि और प्रस्थान करेगे "" बाबा का ये निर्णय  सुन सभी हतप्रभ सभी सदस्यों ने कारण पूछा कि मान सरोवर कि यात्रा अब क्यूँ नहीं करनी है ? तो बाबा ने कहा कि बताओ कि वो जटा धारी , बैल , गृहणी , बच्चे और झोपडी तुम्हे कही दिखाई देती है ""
'' नहीं '' सभी ने कहा !
बाबा बाले '' सोचो , कौन थे वो , समझ में आया ...''!
सभी मौन ... फिर अचानक चौक कर बोले ''' ओह! भोले नाथ !
नगा बाबा और कुछ आँखों में आंसू आ गए !
धन्य हो  गए  हम , जो माता पार्वती के हाथों से हमे खाना खाया है और साक्षात् शिव परिवार के दर्शन किया है ! कुछ सदस्यों ने बात नहीं मानी वे हठ करने लगे कि हम तो कैलाश पर्वत कि यात्रा करेगे और वे चल पड़े मगर नागा बाबा और कुछ साथ वापिस बीकानेर कि चल पड़े कहा कि '' जिस के लिए यात्रा कर रहे थे वे स्वयं ही हमे बीच राह प्राप्त हो गए , अब फिर काहे कि यात्रा '' कहते कि जो सदस्य यात्रा पे गए वे वापिस नहीं आ पाए कही बर्फ बारी दब गए ,
नागा बाबा कि बीकानेर कि संसोलाव तालाब के किनारे आदम कद प्रतिमा के रूप में आज भी विराज मान है लोग आज भीश्रधा   से उनके धोक  लगाते है !

Monday, March 5, 2012

होली- सुनील गज्जाणी की नज़र से

१.
संदेशा
होली आगमन का
वे दरख्त
अपने पत्तों को
स्वयम् से जुदा कर
हर बार देते हैं।

२.
नंग-धडंग
हो जाते वे दरख्त
नागाबाबा साधू की मानिन्द
मानो, तप कर रहे हैं।
या
होलिका का ध्यान भंग
मैं बचपन से
सुनता आया हूं
पढता रहा हूं
कि होलिका शत्रु
प्रह्लाद की भक्ति और
जनता का अश्लील कटाक्ष रहे
शायद
इसी परम्परा को निभाते दरख्त
या
बाहें फैलाए रंग-उत्सव का
स्वागत करते

३.
रंग
तीनों गुणों से परे कितना
रंग
मन से मेल नहीं
चरित्र से मेल नहीं
तभी
निखरता है।

४.
भीगा रोम-रोम
बरसी कुछ
नयन बून्दों से

हुए नयन रक्तिम
मुख गुलाल वर्ण
श्याम नयन
जल में डूबे
ये भी कैसी होली है।
भीग रही
पिया याद में
उड-उड आती
अबीर-गुलाल
ज्यूं-ज्यूं मेरा
तन छुए
हंसी-ठिठोली
मसखरी बातें
त्यूं-त्यूं उनकी
याद दिलाए
नयन बांध
है लबालब

भीतर मन रहा सुलग
तन गीला बाहर
भीतर मन सूखा
मचा दुडदंग हर ओर
छैल-छबीला माहौल
गूँजे होली है, होली है
की आवाजें
पर डूबा तन-मन
श्याम वर्ण में
पडा फीका मुख का वर्ण
अधरों में दिखे
पडी बिवाईयाँ
सूखा मन
गीला हो के भी तन
ये भी कैसी होली है।
***
-सुनील गज्जाणी

Friday, December 9, 2011

राजस्थानी कवितावां

तीन नानी नानी कवितावां
(१)
बिंदी
मिनख अर पाना सूं
सांगो पांग सगपन करती !

(२)
रेखावा जीवन अर जीवन रे बारे री
खासम ख़ास व्याकरण !

(३)
इछावां
जीवन अर सागे
विस -अमरित
रमती !

सुनील गज्जाणी

Monday, September 26, 2011

लघु कथाएँ

                                                                                (1)                                                                           
                                                                              नौकरी 


वो जगह जगह  से ज़ख्मी हो कर खूंखार  कुत्तो के बीच से नन्हे पिल्लै को बचा लाया , वहां  एकत्रित हुए लोगो ने उसके पशु प्रेम पे उसे शाबाशी दी , खूब सराहा ! मगर वो अपने ज़ख्मो को भूल सोच रहा था '' अगर पिल्लै को कुछ हो जाता तो मालिक  मुझे नौकरी पे थोड़े ही रखते ,मुझे नौकरी के लिए फिर दर दर भटकना पड़ता !''
सुनील गज्जाणी
                                                                 (2)                         
                                                                                        छः रुपये 

'' महीने का हिसाब किताब बिगड़ गया है चीनी लेने गयी थी दुकानदार बोला , पेंतीस रुपये किलो हो गयी है छः रुपये और दो , मैं वापिस आ गयी ... पैसे और नहीं ले गयी थी मैं .. होते भी कहाँ  से , सब्जी वाले का , आटे वाले का , दूध वाले . गुड्डू कि फीस सभी जोड़ कर देख लिया किसी में से भी छः रुपये नहीं बचता ! हाँ  , वे सभी बोल रहे थे कि हम भी पैसे बढाएंगे , हम लायेंगे कहाँ से ? आप के सेठ  के पास गयी थी छः रुपये लेने , तो बोला '' रुपये छः लो या सौ , ब्याज बराबर लगेगा और बोला कि तुम्हारे पति कि बिमारी के इलाज़ के वास्ते वैसे भी उधार बहुत दे दिया , अगर वो थोड़े थाडे भी ठीक हो गए होतो काम पे भेजो ताकि क़र्ज़ उतरे '' ..... मैं अपना सा मुँह लिए चली आई '' सुनो ! तुम्हारी नौकरी छठे वेतन में नहीं आती क्या ? जहाँ भी  देखो इसी कि चर्चा सुनने को मिलती है , वैसे ये है क्या ? खैर .. अभी मतलब कि बात करू कि मैं ये छः रुपये किस खर्चे में से निकालू बताओ ना ? ''

सुनील गज्जाणी

Friday, August 19, 2011

तीन हाइकु

हाइकू
(१)
खूब बरसे
विरह में सावन
लिए ये नैन !


(२)
बचपन तो
कुम्हार का है चाक
ज्यूं चाहो  घड़ो !


(३)
सींचा है खूब
मेह ने इन सूखे
दरख्तों को तो !
*******
-सुनील गज्जाणी

Tuesday, July 5, 2011

कविताएँ

 

मित्र! तुम्हे मेरे मन की बात बताऊ।

  किस नयन तुमको निहारू,

किस कण्ठ तुमको पुकारू,
रोम रोम में तुम्ही हो मेरे,
फिर काहे ना तुम्हे दुलारू,
मित्र! तुम्हे मेरे मन की बात बताऊ।

प्रतिबिम्ब मै या काया तुम,
दोनो मे अन्तर जानू,
हाँ, हो कुछ पंचतत्वो से परे जग में,
फिर मै धरा तुम्हे माटी क्यू ना बतलाऊ,
सुनो! तुम तिलक मै ललाट बन जाऊ,
मित्र! तुम्हे मेरे मन की बात बताऊ।।

बैर-भाव, राग द्वेष करू मै किससे,
मुझ में जीव तुझ में भी है आत्मा बसी,
पोखर पोखर सा क्यूं तू जीए रे जीवन,
जल पानी, जात-पात मे मै भेद ना जांनू,
हो चेतन, तुझे हिमालय, सागर का अर्थ समझाऊ,
मित्र! तुम्हे मेरे मन की बात बताऊ।।।

विलय कौन किसमे हो ये ना जानू,
मेरी भावना तुझ में हो ये मै मानू,
बजाती मधुर बंशी पवन कानो में हमारे,
शान्त हम, हो फैली हर ओर शान्ति चाहूं,
मित्र! तुम्हे मेरे मन की बात बताऊ।।। 
 सुनील गज्जाणी

नज़रें 

जाने कौनसा फलसका ढूंढती
मेरे चेहरे में वो नजरे
जाने कौनसी रूबाई पढती
मेरे तन पे वो नजरे
जाने क्यूं मुझे रूमानी गजल समझते वो
शायद मेरे औरत होने के कारण
जाने कौनसा .............................. नजरे।
नुक्ता और मिसरा दोनो मेरी ऑंखे शायद
लब बहर तय करते
जुल्फे अलफाजो को ढालती
चेहरा एक शेर बनता शायद
मेरे जज्बात उन नजरो से मीलो दूर
पलके बेजान सी हो जाती मेरी
नजरे बींध देती जमीं को मेरी
वो मैली ऑंखे देख
जाने कौनसा .............................. नजरे।।
मै आकाश को छूने निकली थी
मगर घरौंदे तक ही सिमट गई
एक लक्ष्मण रेखा सी खिंच गई
ठिठक गए कदम वो मैली नजरे देख
किसे दोष दूं
किसे दोष दूं, मै ...... औरत का होना
कैसे ना दोष दूं, औरत का ना होना
पल पल मरती मै
कभी काया के भीतर
कभी काया लिए
मरती कभी तन से
कभी मन से
खिरते सपने
गिरते रिश्ते
जाने कौनसा अदब लिए
जाने कौनसा ....................... वो नजरे।।
सुनील गज्जाणी

Saturday, June 18, 2011

दो लघुकथाएँ

  (१) पहचाना नही

‘‘भले ही तुम मेरी पत्‍नी होकर मेरा साथ ना दो, मगर मैं ये मानने को कतई तैयार नहीं हूं कि गजनी फिल्‍म के आमिर खान जैसा किरदार भी कोई इन्‍सान हक़ीकत में होता है क्‍या, कि जिसे याददाश्त सिर्फ पन्‍द्रह मिनट के लिये रहती है.....मैं इस मैगजीन में छपे आर्टिकल की कटु आलोचना करता हूं।''..... ‘‘डॉक्‍टर रिजर्व नेचर की मेरी पत्‍नी जाने कैसे तुमसे इतनी घुल-मिल गई जो इस आर्टिकल को लेकर तुम्‍हारा सपोर्ट कर रही है..... डॉक्‍टर......मुझे हस्‍पताल से छुट्टी कब दे रहे हो, मेरी मेडिकल रिपोर्ट का क्‍या हुआ। हॉँ..मेरी बीमारी तुम्‍हारे पकड़ में आयी है या नहीं या यूंही मुझ पर एक्‍सपेरीमेंट करे जा रहे हो, डॉक्‍टर लोग शायद मरीज को इन्‍सान नहीं जानवर समझकर अपने नित-नए प्रयोग करने की कोशिश करते हैं, हॉँ... तो डॉक्‍टर............।

‘‘क्‍या हुआ चुप क्यूँ हो गए ?'' बौखलाई सी पत्‍नी उसके पास जाती हुई बोली।
‘‘माफ कीजिए, मैने आपको जरा....पहचाना नहीं''
पत्‍नी डबडबाई आँखें लिए अपनी शादी का फोटो फिर से पति को दिखाने लगी।

(२) प्रार्थना

भारत और श्री लंका के बीच दाम्बुला  मे चल रहा ट्वेंटी - २० क्रिकेट मैच रोमांचक स्थिति में था , १२ साल की गुडिया मेरे साथ बैठी मैच देख रही थी हालांकि क्रिकेट का उसे इतना ज्ञान नही था मै टीवी स्क्रीन पे आखें गडाए उत्सुकता मे था ।
‘‘पापा ........ क्या इंडिया जीतेगा ?
‘‘बेटा ! पता नही मगर मैच जबर्दस्त रोमांचक हो रहा हैं भारत के दो विकेट बाकी है और अब अन्तिम चार गेंदो पर दो रन बनाने है

मलिंगा ने गेंद फेकी जहीर खान ने स्ट्रोक    खेला मगर दुर्भाग्य जयसूर्या ने चार कदम तेजी से आगे बढा शानदार केच ले लिया; खचाखच भरे स्टेडियम में खामोश बैठे दर्शको में इस कैच आउट ने जबर्दस्त जोश भर दिया ।
‘‘पापा अब क्या इंडिया जीतेगा ?‘‘
‘‘हो सकता है‘‘
मलिंगा ने तीसरी गेंद फेकी नए बल्लेबाज ईशान्त शर्मा ने हुक किया मगर रन नही बन पाया
अब दो गेंद दो रन............. मेरी धडकने तेज हो रही थी
‘‘पापा सीरियस क्यूं हो गए.......... चाय ठण्डी हो रही है ना ?‘‘
‘‘बेटा हमें जीतने के लिए दो गेदों पे दो रन चाहिए मैच का रिजल्ट कुछ भी हो सकता हैं ।‘‘
‘‘पापा अगर में प्रे करू तो इडियां जीत जाएगा ?‘‘
‘‘मन से की गई प्रार्थना का असर तो होता ह है ‘‘
मेरे जवाब से पहले ह वो प्रार्थना भाव मे बैठ गई तभी स्क्रीन पे पवेलियन का एक दृश्य दिखाया जिसमे एक लडकी भी प्रार्थना भाव मे बैठी थी
मंलिंगा ने सैकिण्ड लास्ट गेंद फेकी ईशान्त शर्मा ने हल्का सा पुश किया और तेजी से दौड कर एक रन बना लिया मैच बराबरी पे आ गया
दर्शको का जोश परवान पे था अब एक गेंद और एक रन बस जीत.............. मलिंगां ने अन्तिम गेद फेकी भज्जी ने बल्ला चलाया मगर गेदं बल्ले को छु नही पायी, मैच टाई हो गया...... मुझे लगा शायद दो प्रार्थनाए आपस मे टकरा गई। 

सुनील गज्जाणी