Saturday, April 30, 2011

हाईकू

(१)
पिया कंठों से
पिया मांग के तो
पिया तो पिया !

(२)
मानव मानो
फूला हुआ गुब्बारा
दंभ काहे का !

(३)
ठाठ से सोया
बेटी विदा कर वो
गंगा नहाया !

(४)
दीपक बुझे
रे मानव तन के
ये दिवाली है !

(५)
फिजाएं गूंजी
किलकारियाँ नहीं
कैसी  दिवाली ?

(६)
माँ कि दिवाली
देख सुखी कोख के
दरबार  से !

(७)
चुल्हा मौन है
आरक्षण युद्ध में
कैसा ये फाड़ ?

(८)
ठण्ड जोरो पे
नेता तापते हाथ
जलता देश !

(९)
प्रदूषण तो
घोटाले ही घोटाले
तौबा रे  तौबा !

(१०)
आईना देखा
स्वयं को मैंने नहीं
मुद्दे ही दिखे !
***
सुनील गज्जाणी

Saturday, April 23, 2011

पूज्य पिताजी को शत-शत नमन

       मेरे पूज्य पिताजी को ब्रह्मलीन हुए आज पूरा एक माह हो गया. २३ मार्च २०११ को पूरे एक माह अपनी बीमारी से जूझते हुए सुबह ७:३० बजे चिर निंद्रा में सो गए. हम सब निकट ही बैठे थे. हमें आभास ही नहीं हुआ इस अनहोनी पर. मृत्यु कैसे दबे पाँव आती है ये सिर्फ सूना था, देख भी लिया.
        मेरे पिता का नाम तो 'मोतीलाल' था मगर अपने यार दोस्तों में वे 'बाबूजी' और महाराज नाम से अधिक जाने जाते थे. मैं उनसे इतना डरता था की उनके पास खड़ा होना तो दूर, आँखें तक मिलाने की हिम्मत नहीं कर पाटा था. जबकि २५ दिसंबर, २००७ को पहली बार वे बीमार पड़े तब से लेकर अंतिम पलों तक इतना साथ रहा जो मेरे लिए सदा अविस्मरनीय रहेगा.
       मेहनत और लगन में उनका कोई शानी नहीं था. जो ठान लिया तो बस ठान लिया और कर ही लिया. जुबां के पक्के. सही को सही और गलत को गलत, चाहे सम्मुख कोई भी व्यक्ति हो.  उनकी इसी खासियत के सब कायल थे. भूली-बिसरी बातें, अनछुए पहलू बहुत हैं. उनके साथ शायद अंतिम सालों में निकट बैठकर भरपाई करने का प्रयास किया.
        पिता- जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता. उनके बताये मार्ग पर अनुसरण किया जा सकता है. अवस्था ७५ वर्ष की कोई यूं जाने की भी नहीं होती मगर विधि के विधान को कौन ताल सकता है. हमें आज भी विश्वास नहीं होता की २२ मार्च तक हम उन्हें एक नन्हे बच्चे की तरह सहेज कर, देखभाल करते रहे. उनके हर आवश्यक काम के लिए वे बच्चे ही बन गए...आत्मिल सुकून भी है की हमने पूरी श्रद्धा से उनकी सेवा की..खैर....
       आज पुनः वही एक माह पुराना दिन याद आया और पलकें नम कर गया. २३ मार्च, २०११  की ये तारीख समय के साथ अतीत होती रहेगी मगर उनका आभास, उनकी यादें हमारी धडकनों की लय से लय मिलाती सदा स्मृतियों में गूंजती रहेगी. जब भी जीवन में कहीं कोई परेशानी या मुसीबत आयेगी तो पिताजी स्मृतियों से निकल मेरी उंगली पकड़ कर अपने आभास में मुझे सही राह पर लाकर ठोकरों से बचाते रहेंगे. . 
       आज मैंने अपना ब्लॉग 'अक्षय मोती' आरम्भ किया है जो पूज्य पिता जी की स्मृति में उन्ही को समर्पित करता हूँ. चाहता हूँ  कि आप भी दुवा कीजिये कि उनको मोक्ष मिले और मुझे आप सभी का स्नेहिल आशीर्वाद. 
पूज्य पिताजी को शत-शत नमन ! ॐ शांतिः शांतिः शांतिः !