Saturday, March 30, 2013

सम्मान

DSC_0124.JPG                  वयो वृद्ध यज्ञाचार्या ,  प्रकांड विद्वान , दुर्गा उपासक श्री युत आदरणीय पंडित श्री नथमल पुरोहित जी का पूज्य पिता जी की स्मृति में गठित संस्थान '' श्री मोती लाल गज्जानी स्मृति संस्थान '' द्वारा का सम्मान किया गया और वृक्षारोपण किया गया !
 दिनाक २ ५ /३ /२ ० १ ३ को !

           











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Saturday, March 23, 2013

एक ये २ ३ मार्च भी , मेरे जनक को समर्पित !

    एक ये २ ३ मार्च भी , मेरे  जनक को समर्पित !

आज पूरे भारत वर्ष में '' शहीद दिवस '' मनाया जा रहा है . अमर  शहीद भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव की स्मृति में ! जिस प्रकार उन्हें हर भारतीय नागरिक विस्मृत नहीं कर सकता उसी प्रकार , मेरे लिए भी ये दिन एतिहासिक है जिस मैं अपने जीवन में कभी विस्मृत  नहीं कर पाउगा ! गुणीजनों , मैं आज का पावन दिन ,आप से सांझा करना चाहूंगा अपने श्रदेय पूज्य पिता जी निमित की आज के दिन ही मेरे जनक मेरे पिता  जी अपने भरे पूरे परिवार को छोड़ मोक्ष को प्राप्त हो गए थे २ ३ मार्च २ ० १ १ उस  दिन बुध वार था , वे लगभग डेढ़ माह जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष करते  रहे , कभी कोमा में रहते तो कभी अर्ध कोमा में .डॉक्टर्स की सलाह से घर  पे ही  उपचार शुरू करवाया , क्यूंकि वर्ष २ ० ० ७  में वे इस अवस्था में आये तो डॉक्टर्स ने कह दिया था की अब '' हेंडल विथ केयर '' रखना क्यूंकि अब ये कांच के बर्तन की तरह है थोड़ा सा भी चूक हुआ तो बर्तन .......  ! किडनी पे उनके असर था , कमज़ोर हो गयी थी , इसकी वजह भी डॉक्टर ही था जो हमारे शहर का नामी है , कारन था की मेरे पिता जी वजन में थोड़ा सा ज़्यादा हो गए तो चलते तब हाफ्ने लगते थे जब उन डॉक्टर महोदय को बताया तो उन्हें ज़बरदस्ती दमे का मरीज बना दिया की सांस फूलती है इसलिए और जनाब ने हाई डोज़ की दवाईया दे दे कर इस का मरीज़ बना दिया , ये पता हमे तब चला जब तबीयत ज़्यादा बिगड़ी और हस्पताल ले गए वह भी द्वन्द रहा पहले की तरह ही एक और डॉक्टर महाशय ने टी बी बता .टी बी का मरीज बना दिया और उनकी भी हाई डोज़ चालू हो गयी , बेचारी किडनी कितना सहन कर सकती है हाई डोजो का . असर पड़ता गया . पिता जी का जीवन ज्वार भाटे की मानिंद कभी कोमा में अर्ध कोमा में चलता रहा . बिमारी कुछ इलाज़ कुछ होता रहा  , इस दौरान पूनम भा ( जो समाज सेवी है } का भरपूर सहयोग रहा चाहे कितनी ही कड़क ठण्ड पद रही थी वे हर उस समय मोजूद रहे या आये जब जब हमे उनकी आवश्यता लगी खैर फ़न्नु भा , मून भाईजी तो थे ही ! मैंने एक ही बात सरकारी हस्पतालो में नोटिस की अगर आप की कोई पहुँच है और दवाइयों की समाज है तो ये हस्पताल उचित है , मरीज़ ठीक हो सकता है वर्ना भगवान ही पालनहार है !मरीजों को अपनी बिमारी के अतिरिक बेशुमार बदबू भी सहन करनी पड़ती है और रहे परिजन तो वे जाए कहा 'हस्पताल की ये महक अब भी नासिका में महसूस होती है ! खैर… अन्यथा अपने को और मैं क्यू कुरेदू . दर्द मुझे ही होगा , अब भी वो द्रश्य मेरे जहाँ में ज्यू का त्यूं स्थिर है जब पिता जी अपनी देह त्याग बैकुंठ को प्रस्थान कर गए थे तब वे सोये हुए बड़े ही मासूम लग रहे थे . किसी बच्चे की तरह . अपना एक हाथ गाल के नीचे रखे और एक उस हाथ प अपनी हथेली रखी हुई थी , चेहरा एक दम शांत . कोई चिंता का भाव नहीं और ना ही कोई सलवट थी माथे पे . जब भाभी जी ने कहा की पापा का पेट नहीं हिल रहा है , क्यूँ की उनका पेट भीतर पानी होने के कारण इतना बढ़ गया था की सांस लेते समय पेट हिलता हुआ दूर से ही अहसास कराता था , मैं रात को पापा क पास ही बैठा रहता था मैंने जितना समय २ ० ० ७ से २ ० १ १  के बीच का जितना समय उनके साथ बिताया उतना कभी नहीं , क्यूंकि मैं उन से डरता बहुत था , नज़रे मिलाने की हिम्मत नहीं होती थी मेरी ! मैंने पापा की नब्ज़ देखी धड़क नहीं रही थी , मैंने रात को भी देखि नब्ज़ बहुत धीमी चल रही थी , मन का आशंका इस अनहोनी पे उठी थी , मगर मैंने अपना उस समय सर झटक दिया .अगर हम ज्योतिष को माने तो कुंडली में था की जब तक पापा के पद पोता नहीं होगा . तब तक कुछ नहीं होगा . हम सब तसल्ली में थे की अभी पापा का पोता तो छोटा ही है , पडपोता तो क्या अभी सगाई के लिए भी दूर तक आसार नहीं है , कहते है ना की होनी को कौन टाल सकता है . हम सब ने अपने पूरे  खानदान को याद किया तो अवाक रह गये  की पापा तो पद दादा बन चुके है , भले ही रिश्ते में हो ! सभी सिहर उठे .. , ये मानना पडा की अगर सही आंकड़े हो तो ज्योतिष से हर बात जान सकते है , . पापा की नब्ज़ शांत थी मन हिलोरे मारने लगा और आँखों से पानी टपकने लगा . मैं हाथ जोड़ पापा की देह के पास पास बैठ गया . कुछ ही क्षणों में एक जीव को है से थे में परिवर्तित होता देखा की मौत कैसे दबे पाँव आती है कैसे अपना काम कर चल देती है ये सुना ही था अब साक्षात देख भी लिए ! अपने प्रिय पिता के रूप में देह से देहान्तर होने तक ! अपनी समस्त अभिव्यक्ति पूज्य पिता जी को ही सपर्पित है इस ब्लॉग के रूप में तो ये अभिव्यक्ति , शब्दाञ्ज्जलि उन्ही को अर्पित ! शत शत नमन !