Tuesday, August 21, 2012

 तीन कविताएं
 (1) 

एक शब्द नहीं बोली
रख लिया पत्थर
ह्रदय पे
वेदना सब कुछ कह गए
शब्द
आँखों से खीर खीर !


{ २ }
नन्ही बूंदें
अब भी अपना अस्तित्व
दर्शा रही है
टीलों के मुहानों पर
मानों, मुख चूम रही हो
तब तक
जब तक पांवों से अछूती रहे !
{३}
ढेरों
पीपल के टूटे पत्ते
पानी पे यू आलिंगंबध
मानो ,
सहला रहे
मलहम लगा रहे हो
तालाब दिन भर
चिलचिलाती धुप में
कितना जला है बेचारा !
सुनील गज्जाणी

Monday, June 25, 2012

 प्रेरक बाते
आज कुछ हट  कर लिखना का मन कर रहा रहा  है .मसलन कुछ प्रेरक प्रसंग कि तरह !
अभी हालही में राजस्थान के वित्त आयोग अध्यक्ष डॉक्टर श्री बी. डी. कल्ला ने कैलाश मान सरोवर कि सपत्निक यात्रा कि यात्रा बेहद ज़टिल होती है ये पढ़ा भी हर सुना भी और चित्रों में देखा भी है श्रे कल्ला बेहद आस्था वादी व्यक्ति है शिव उपासक वे कोई भी धार्मिक आयोजन में प्रतिभागिता का अवसर नहीं छोड़ना चाहते है खैर ... मान सरोवर  यात्रा में अपने ३०/४० सदस्यों वाले दल में वे सबसे वरिष्ठ यात्री थे जैसे बाताया कि जब वे मान सरोवर तालाब के पास पहुचे तो उनकी उसमे स्नान कि इच्छा हुई मगर सरोवर में बर्फ ज़मी देख साथ यातियों कि वैसे ही सासे मानो जाम गयी सब ने मन किया कि सरोवर में बर्फ है पानी बेहद ठण्ड है मत नहाइए मगर वे इस पुण्य को गवाना नहींचाहते  थे इस पावन भूमि और पावन सरोवर .. कितना पुण्य मिलगा ये सोच सरोवर में उतर गए अपने हाथो से बर्फ को किनारे करते .. एक वरिष्ठ यात्री को देख अन्य जवान श्रदालु यात्री धीरे धीरे सरोवर में उतरने  लगे , पवित्र सरोवर में उतरने के बाद जो आंनद जो अनुभूति सभी को हुई वो बया नहीं कि जा रही थी उन सभी से . सभी कल्ला जी का आभार मानने लेगे कि आप के द्वारा हमे ये पुण्य प्राप्त हुआ वर्ना बरफ को देख हम इस अलौकिक आनद से वंचित रह जाते ...इतना ही नहीं कल्ला जी ने तो सरोवर के किनाए एक यज्ञ का भी आयोजन करना चाहा मगर इस बात से कुछ यात्री नाराज़ हुए कि हमे यात्रा करनी चाहिए ना कि यज्ञ ... कल्ला जी , ये भी पावन अवसर गवाना नहीं चाहते थे कि इस शिव भूमि पे हम कोई बिना कोई आहुति दिए चले जाए . कुछ यात्री सहमत हुई कुछ नहीं .. मगर मन में तो सभी के ये इच्छा थी यज्ञ सामग्री साथ ही थी सो हवन वेदी पे पावन अग्नि प्रजव्लित हुई शिव भक्त कल्ला जी ने मन्त्रों से पूरा माहोल और आद्यात्मिक  बना दिया सभी ने आत्मिक आनंद हासिल किया एक रात और सरोवर के सम्मेप रुके .सभी से अहसास किये कि उस पवित्र सरोवर में गहन रात्रि में हर दो दो घंटो से दो सितारे सरोवर में समाते हुए प्रतीत हुए .. अलौकिक दृश्य था ये सभी के लिए ... जब रात को अपने तम्बू में सो कर सुबह उठते तो तम्बू पे तीन तीन अंगुल बरफ ज़मी मिलती . एक ही ये विशेष प्रक्कर का तम्बू सभी दल के लिए होता था .दल को जिस मार्ग से आगे जाना था उस मार्ग में रात को जम कर बर्फ बरसी जब ये दल को पता चला तो सभी सहम गए कि अगर उस मार्ग में हमारी रात्री विश्राम होता तो पता नहीं  क्या होता .. सभी सहम गए थे .. सभी कि ये मानों दशा देख कल्ला जी ने कहा किं मुझे एक अहसास हो गया था शायद भले का आदेश था कि मैं यज्ञ करू और इस बहाने हम सभी यहाँ पड़ाव डाल ले अन्यथा हम कही बर्फ में सोए हो सकते थे ... कल्ला  जी कि ये बात सूं सभी बाव विभोर हो गए और उनके परत अपना कृतज्ञ भाव दिखाने लगे ! दोस्तों ये तो एक प्रसंग कल्ला जी के माध्यम से था ! क अब ऐसा प्रसंग है जो आज आधी शताब्दी के बाद भी नागा बाबा के प्रति नत मस्तक हो जाते है !
एक बात और बताना चाहूंगा कि डॉक्टर कल्ला कैलाश मान सरोवर कि यात्रा करने वाले संभवतः पहले व्यक्ति कहे जाते है !
 नागा बाबा मूलतः बीकानेर ( राजस्थान ) के निवासी थे ये सब कहते है ! बडे बुजुर्ग सभी ये कहते आये है कि जब बाबा कैलाश मान सरोवर यात्रा पे अपने २०/२५ सन्यासी साथियों के साथ चल पड़े , कहते है कि सरोवर के पास पहुचते पहुचते उन्हें भूख लग गयी . नागा बाबा ने सोचा कि आस पास तो ऐसा कोई वृक्ष भी नहीं है जिसके फल तोड़ कर खाल लिया  जाये उनकी तपस्वी दृष्टी विचरण कर ही रही थी कि दूर कही एक रौशनी टिम टिमाती हुई नज़र आई उनके चेहरे पे प्रसन्नता छा गयी . उन्होंने अपने साथियों से कहा कि दूर वहा से धुवा सा उठ रहा है , कोई रौशनी भी जल रही है उधर चलते है . नागा बाबा अपने दल के साथ रवाना हो गए उस तरफ गए तो देखा एक झोपडी के बाहर एक लम्बी घणी  जटाएँ ,दादी ! लम्बे चौड़े कद काठी वाला व्यक्ति तपस्या में लीन था . एक तरफ एक बैल बंधा था तो दूसरी और दो बालक खेल रहे थे , झोपडी के भीतर एक महिला कहना बना रही थी , खाने कि महक से सभी के मुझ में पानी आ रहा था ! मगर कहे क्या .. तभी जटा धारी पुरुष बोला '' क्यूँ भूख लगी है ? चलो खाना खा लो बन ही रहा है ! नागा बाबा मन पे नियत्रण रखते हुए बोले ''नहीं नहीं हमे भूख नहीं है हम तो खा कर आये है "' जब कि पट में तो चूहे खुद रहे थे ! जटा धारी बोले " क्यूँ झूठ कह रहे हो यहाँ से तो दूर दूर तक कोई खाने कि सामग्री नहीं है चलो खाना भीतर बन रहा है भोजन कर ही लो . सभी को भूख तो थी ही बहुत देर हा. ना हाँ ना वाली स्थिती में रहने बाद हामी भर ! सभी खाने पे बैठ गए गृहिणी ने बेहद मान सम्मान के साथ सभी को भहर पेट खाना खिला दिया , खाना भी ऐसा लज़ीज़ था कि तोड़ी ही दर में सभी को नीद आने लगी और और वही सो गए . !
सुबह जब नगा बाबा आदि सभी जब उठे तो सभी तारों ताज़ा महसूस कर रहे थे और आहे कि यात्रा कि मंत्रणा करने लगे , मगर बाबा घूम घूम कर उस झोपडी को ढूँढने लगे मगर वो कही दिखाए नहीं दी ना हो वो जटा धरी , ना बैल ना वो बच्चे और ना हो वो गृहिणी ! बाबा दुविधा में पद गए ... फिर अचानक मुस्कुराते हुए नमन करते हुए बोले '' अब हम यात्रा नहीं करंगे पुनः बीकानेर कि और प्रस्थान करेगे "" बाबा का ये निर्णय  सुन सभी हतप्रभ सभी सदस्यों ने कारण पूछा कि मान सरोवर कि यात्रा अब क्यूँ नहीं करनी है ? तो बाबा ने कहा कि बताओ कि वो जटा धारी , बैल , गृहणी , बच्चे और झोपडी तुम्हे कही दिखाई देती है ""
'' नहीं '' सभी ने कहा !
बाबा बाले '' सोचो , कौन थे वो , समझ में आया ...''!
सभी मौन ... फिर अचानक चौक कर बोले ''' ओह! भोले नाथ !
नगा बाबा और कुछ आँखों में आंसू आ गए !
धन्य हो  गए  हम , जो माता पार्वती के हाथों से हमे खाना खाया है और साक्षात् शिव परिवार के दर्शन किया है ! कुछ सदस्यों ने बात नहीं मानी वे हठ करने लगे कि हम तो कैलाश पर्वत कि यात्रा करेगे और वे चल पड़े मगर नागा बाबा और कुछ साथ वापिस बीकानेर कि चल पड़े कहा कि '' जिस के लिए यात्रा कर रहे थे वे स्वयं ही हमे बीच राह प्राप्त हो गए , अब फिर काहे कि यात्रा '' कहते कि जो सदस्य यात्रा पे गए वे वापिस नहीं आ पाए कही बर्फ बारी दब गए ,
नागा बाबा कि बीकानेर कि संसोलाव तालाब के किनारे आदम कद प्रतिमा के रूप में आज भी विराज मान है लोग आज भीश्रधा   से उनके धोक  लगाते है !

Monday, March 5, 2012

होली- सुनील गज्जाणी की नज़र से

१.
संदेशा
होली आगमन का
वे दरख्त
अपने पत्तों को
स्वयम् से जुदा कर
हर बार देते हैं।

२.
नंग-धडंग
हो जाते वे दरख्त
नागाबाबा साधू की मानिन्द
मानो, तप कर रहे हैं।
या
होलिका का ध्यान भंग
मैं बचपन से
सुनता आया हूं
पढता रहा हूं
कि होलिका शत्रु
प्रह्लाद की भक्ति और
जनता का अश्लील कटाक्ष रहे
शायद
इसी परम्परा को निभाते दरख्त
या
बाहें फैलाए रंग-उत्सव का
स्वागत करते

३.
रंग
तीनों गुणों से परे कितना
रंग
मन से मेल नहीं
चरित्र से मेल नहीं
तभी
निखरता है।

४.
भीगा रोम-रोम
बरसी कुछ
नयन बून्दों से

हुए नयन रक्तिम
मुख गुलाल वर्ण
श्याम नयन
जल में डूबे
ये भी कैसी होली है।
भीग रही
पिया याद में
उड-उड आती
अबीर-गुलाल
ज्यूं-ज्यूं मेरा
तन छुए
हंसी-ठिठोली
मसखरी बातें
त्यूं-त्यूं उनकी
याद दिलाए
नयन बांध
है लबालब

भीतर मन रहा सुलग
तन गीला बाहर
भीतर मन सूखा
मचा दुडदंग हर ओर
छैल-छबीला माहौल
गूँजे होली है, होली है
की आवाजें
पर डूबा तन-मन
श्याम वर्ण में
पडा फीका मुख का वर्ण
अधरों में दिखे
पडी बिवाईयाँ
सूखा मन
गीला हो के भी तन
ये भी कैसी होली है।
***
-सुनील गज्जाणी