सम्मानिय विद्वजन ये एक शेर ही नहीं मेरे जीवन का एक हिस्सा रहे है ये क्षण जिस से मैं हो कर गुजरा हूँ जिसे मैं कभी विस्मृत नहीं सकता !अपने पूज्य पिता जे कि स्मृतियों !
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ढूंढता वो राख में नहीं कोई सुराग
है बीनता अपने पिता कि अस्थियाँ
सोचा के समंदर में इतना बवाल क्यूँ
रोया बहुत बाहों में भर वो अस्थियाँ !
सुनील गज्जाणी
19 comments:
please come out to this mood and re start your new step of creativity ..
i hope you will do it..
yogendra.
भावपूर्ण.
sach me bhaw se bhara hua...:)
जीवन में ये दिन सबको देखना पड़ता है और फिर माता पिता ही वो इंसान हैं जो जीवन में एक बार जाने पर फिर कभी नहीं मिलते और रिश्ते तो बनते और बिगड़ते हैं . लेकिन धैर्य से उसका सामना करना ही आपकी विद्वता और गंभीरता की निशानी है. आप बहुत से लोगों के लिए अभी सांत्वना देने वाले होगे तो उस दायित्व को निभाइए जिसे पिता ने आपकेकन्धों पर डाला है.
bhaavpoorn rachna jisne man dravit kar diya
दि को छूने वाले यादगार शेर हैं।
udwelit mann ke gahre bhaw
सुनील जी, आपकी सारी भावनाएं इन चार पंक्तियों में सिमट गयी हैं। बहुत श्रेष्ठ।
पढ़ कर मौन हो गया हूँ...क्या कहूँ...ऐसे शब्द सिर्फ मौन को निमंत्रण देते हैं...आपके दुःख के साथ हम सब हैं.
नीरज
हम भी तूफां छुपाय बैठे हैं ,
अपनी बारी का इंतज़ार किये |
डॉ. ग़ुलाम मुर्तजा शरीफ - अमेरिका
आपने बहुत अच्छे भाव पेश किए हैं सुनील जी
पिताजी को हम सब की श्रधांजलि
eeshwr hi smbl hai
सुनील जी .....पिता का जाना और उनकी कमी ...कोई नहीं भर सकता
इस दर्द को बहुत करीब से महसूस करती हूँ ...इस लिए आपके एक एक शब्द का दर्द मेरे दिल से हो कर गुज़रा है
bhavpooran abhivyakti...
bhawuk abhivyakti....
bhawpooran....
Aapkee bhavna sab kee bhavnaa hai .
भाई सुनील जी ,
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------नमन !
ऐसी पंक्तियों के लिए शब्द नहीं हुआ करते !
इस कष्ट से बाहर तो आना ही होगा !
यहीं अटक गए तो भटक जाओगे !
मैं जो हूं गमों का पहाड़ उठाए
मुझे देखो
और अपने गम मुझे दे कर
अपने कम कर लो
यानी जी लो !
जीना तो होगा ही
फ़िर लाचारी क्यूं ?
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