मित्र! तुम्हे मेरे मन की बात बताऊ।
किस नयन तुमको निहारू,
किस कण्ठ तुमको पुकारू,
रोम रोम में तुम्ही हो मेरे,
फिर काहे ना तुम्हे दुलारू,
मित्र! तुम्हे मेरे मन की बात बताऊ।
प्रतिबिम्ब मै या काया तुम,
दोनो मे अन्तर जानू,
हाँ, हो कुछ पंचतत्वो से परे जग में,
फिर मै धरा तुम्हे माटी क्यू ना बतलाऊ,
सुनो! तुम तिलक मै ललाट बन जाऊ,
मित्र! तुम्हे मेरे मन की बात बताऊ।।
बैर-भाव, राग द्वेष करू मै किससे,
मुझ में जीव तुझ में भी है आत्मा बसी,
पोखर पोखर सा क्यूं तू जीए रे जीवन,
जल पानी, जात-पात मे मै भेद ना जांनू,
हो चेतन, तुझे हिमालय, सागर का अर्थ समझाऊ,
मित्र! तुम्हे मेरे मन की बात बताऊ।।।
विलय कौन किसमे हो ये ना जानू,
मेरी भावना तुझ में हो ये मै मानू,
बजाती मधुर बंशी पवन कानो में हमारे,
शान्त हम, हो फैली हर ओर शान्ति चाहूं,
मित्र! तुम्हे मेरे मन की बात बताऊ।।।
सुनील गज्जाणी
नज़रें
जाने कौनसा फलसका ढूंढती
मेरे चेहरे में वो नजरे
जाने कौनसी रूबाई पढती
मेरे तन पे वो नजरे
जाने क्यूं मुझे रूमानी गजल समझते वो
शायद मेरे औरत होने के कारण
जाने कौनसा .............................. नजरे।
नुक्ता और मिसरा दोनो मेरी ऑंखे शायद
लब बहर तय करते
जुल्फे अलफाजो को ढालती
चेहरा एक शेर बनता शायद
मेरे जज्बात उन नजरो से मीलो दूर
पलके बेजान सी हो जाती मेरी
नजरे बींध देती जमीं को मेरी
वो मैली ऑंखे देख
जाने कौनसा .............................. नजरे।।
मै आकाश को छूने निकली थी
मगर घरौंदे तक ही सिमट गई
एक लक्ष्मण रेखा सी खिंच गई
ठिठक गए कदम वो मैली नजरे देख
किसे दोष दूं
किसे दोष दूं, मै ...... औरत का होना
कैसे ना दोष दूं, औरत का ना होना
पल पल मरती मै
कभी काया के भीतर
कभी काया लिए
मरती कभी तन से
कभी मन से
खिरते सपने
गिरते रिश्ते
जाने कौनसा अदब लिए
जाने कौनसा ....................... वो नजरे।।
मेरे चेहरे में वो नजरे
जाने कौनसी रूबाई पढती
मेरे तन पे वो नजरे
जाने क्यूं मुझे रूमानी गजल समझते वो
शायद मेरे औरत होने के कारण
जाने कौनसा .............................. नजरे।
नुक्ता और मिसरा दोनो मेरी ऑंखे शायद
लब बहर तय करते
जुल्फे अलफाजो को ढालती
चेहरा एक शेर बनता शायद
मेरे जज्बात उन नजरो से मीलो दूर
पलके बेजान सी हो जाती मेरी
नजरे बींध देती जमीं को मेरी
वो मैली ऑंखे देख
जाने कौनसा .............................. नजरे।।
मै आकाश को छूने निकली थी
मगर घरौंदे तक ही सिमट गई
एक लक्ष्मण रेखा सी खिंच गई
ठिठक गए कदम वो मैली नजरे देख
किसे दोष दूं
किसे दोष दूं, मै ...... औरत का होना
कैसे ना दोष दूं, औरत का ना होना
पल पल मरती मै
कभी काया के भीतर
कभी काया लिए
मरती कभी तन से
कभी मन से
खिरते सपने
गिरते रिश्ते
जाने कौनसा अदब लिए
जाने कौनसा ....................... वो नजरे।।
सुनील गज्जाणी
13 comments:
दोनों ही कवितायेँ बेहतरीन.. बहुत बढ़िया.. मन को छू गईं आपकी कवितायेँ...
प्रतिबिम्ब मै या काया तुम,
दोनो मे अन्तर जानू,
हाँ, हो कुछ पंचतत्वो से परे जग में,
फिर मै धरा तुम्हे माटी क्यू ना बतलाऊ,
सुनो! तुम तिलक मै ललाट बन जाऊ,
मित्र! तुम्हे मेरे मन की बात बताऊ।।
waah
दोनों ही रचनायें-बहुत उम्दा!!! वाह!!
दोनों कवितायें मन को छूती हैं ... बहुत बढ़िया हैं दोनों ...
मित्र! तुम्हे मेरे मन की बात बताऊ..
पढ़ कर कविता मन आनंदित हो रहा, मित्र सब्द मुजको भीतर से ज़क ज़ोर रहा ,
भाव भर गया आँखों मई दिल आंसू मई डूब रहा ,प्रेम भाव सब्दो से यूँ तुम्हारे झर रहा ,....
thanks for share this poem to me best of luck..
your younger brother
yogendra kumar purohit
मन का स्पर्श करती रचनाएँ.
बधाई और शुभकामनाएं.
-'सुधि'
behatreen kavitaye mili padhne ko bahut bahut shukriya
आज जहाँ हर तरफ धोखे और फरेब का बोलबाला है ...वही आपकी सोच दोस्ती को ले कर स्पष्ट नज़र आती है ....मन के भावो को यूँ ही संभाल के रखना सुनील जी
बहुत अच्छा लगा इस तरह की सोच के साथ आपको पढना ...............आभार
सुनील जी आप की दोनों रचनाएँ प्रभावित कराती हैं ,बधाई
दोनों ही कविताएं रिश्तों की जीवंत और ख़ूबसूरत दास्तान हैं। बधाई।
दोनों रचनाओं में भाव बहुत महत्वपूर्ण हैं। पर दोनों रचनाओं को छोटा किया जा सकता है। कम शब्दों में भी यही बात आप प्रभावी तरीके से कह सकते हैं।
*
बहुत संभव है कि इनपुटिंग के वजह से हैं,पर वर्तनी की जो त्रुटियां हैं वे बहुत खटकती हैं। और कम से कम आपके ब्लाग पर तो नहीं होनी चाहिए।
दोनों ही काव्य रचनाएं प्रेम के सूफियाना भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति हैं...अत्यंत हृदयस्पर्शी...
हार्दिक बधाई ...
दोनों ही रचनाएँ बहुत भावपूर्ण हैं.देर से आने का अफ़सोस है.
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