तीन नानी नानी कवितावां
(१)
बिंदी
मिनख अर पाना सूं
सांगो पांग सगपन करती !
(२)
रेखावा जीवन अर जीवन रे बारे री
खासम ख़ास व्याकरण !
(३)
इछावां
जीवन अर सागे
विस -अमरित
रमती !
सुनील गज्जाणी
(१)
बिंदी
मिनख अर पाना सूं
सांगो पांग सगपन करती !
(२)
रेखावा जीवन अर जीवन रे बारे री
खासम ख़ास व्याकरण !
(३)
इछावां
जीवन अर सागे
विस -अमरित
रमती !
सुनील गज्जाणी
4 comments:
वाह ... तीनों कमाल की क्षणिकाएं ...
bahut gehre bhavon men pagee huee chhanikaen man ko chhu jaati hain,badhai.
teeno kshanikayen behtareen!
हां भाई, इच्छाएं तो जीवन के साथ ही मरती है!
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