तीन कविताएं
(1)
एक शब्द नहीं बोली
रख लिया पत्थर
ह्रदय पे
वेदना सब कुछ कह गए
शब्द
आँखों से खीर खीर !
{ २ }
नन्ही बूंदें
अब भी अपना अस्तित्व
दर्शा रही है
टीलों के मुहानों पर
मानों, मुख चूम रही हो
तब तक
जब तक पांवों से अछूती रहे !
{३}
ढेरों
पीपल के टूटे पत्ते
पानी पे यू आलिंगंबध
मानो ,
सहला रहे
मलहम लगा रहे हो
तालाब दिन भर
चिलचिलाती धुप में
कितना जला है बेचारा !
सुनील गज्जाणी
(1)
एक शब्द नहीं बोली
रख लिया पत्थर
ह्रदय पे
वेदना सब कुछ कह गए
शब्द
आँखों से खीर खीर !
{ २ }
नन्ही बूंदें
अब भी अपना अस्तित्व
दर्शा रही है
टीलों के मुहानों पर
मानों, मुख चूम रही हो
तब तक
जब तक पांवों से अछूती रहे !
{३}
ढेरों
पीपल के टूटे पत्ते
पानी पे यू आलिंगंबध
मानो ,
सहला रहे
मलहम लगा रहे हो
तालाब दिन भर
चिलचिलाती धुप में
कितना जला है बेचारा !
सुनील गज्जाणी
12 comments:
ढेरों
पीपल के टूटे पत्ते
पानी पे यू आलिंगंबध
मानो ,
सहला रहे
मलहम लगा रहे हो
तालाब दिन भर
चिलचिलाती धुप में
कितना जला है बेचारा !yah kavuta sundar hai...badhai...
bahut hi badhiyaa
ACHCHHEE KAVITAAON KE LIYE BADHAAEE
AUR SHUBH KAMNA .
सुन्दर अभिव्यक्ति. आपको बधाई और शुभकामनाएं.
-'सुधि'
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति अंतर मन के सजीव चित्रण की..जय हो.. .
Bahut bhavpurn!
एक शब्द नहीं बोली
रख लिया पत्थर
ह्रदय पे
वेदना सब कुछ कह गए
शब्द
आँखों से खीर खीर !
बहुत सुंदर भावों को शब्दों में ढाल दिया है . आभार !
ढेरों
पीपल के टूटे पत्ते
पानी पे यू आलिंगंबध
मानो ,
सहला रहे
मलहम लगा रहे हो ...
भावमय ... गहरी बात इन छोटी छोटी पंक्तियों में ... लाजवाब सुनील जी ...
वाह सुनील जी, कितने खूबसूरत अहसास पिरोये हैं आपने...बधाई
ईद की मुबारकबाद के साथ
aapki teeno kavitaon ne achchha prabhav chhoda hai,lekin doosri kavita man ko gehre chhu gaee hai.
badhai.
बेहद संजीदे शब्द ...बहुत उम्दा
waah adbhud bahut sunder
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