{१}
''यथार्थ ''
'' माँ कितना अच्छा होता कि हम भी धनी होते तो हमारे भी यूही नौकर-चाकर होते ऐशोआराम होता ''''यथार्थ ''
'' सब किस्मत कि बात है, चल फटा फट बर्तन साफ़ कर, और भी काम अभी करना पड़ा है! ''
माँ-बेटी बर्तन मांझते हुए बातें रही थी !
'' माँ ! इस घर की सेठानी थुलथुली कितनी है, और बहुओं को देखो हर समय बनी-ठनी घूमती रहती हैं, पतला रहने के लिए कसरतें करती है .. भला घर का काम-काज, रसोई का काम, बर्तन-भांडे आदि माँझे तो कसरत करने कीज़रूरत ही नहीं पड़े, है ना माँ ?
''बात तो ठीक है.., बस हमे भूखो मरना पड़ेगा !"
{ २}
सौदा
''साहब ! मैंने ऐसा क्या कर दिया जो मुझे बर्खास्त कर दिया'' वृद्ध चपड़ासी बोला !सौदा
"तुमने तो सिर्फ अपना कर्तव्य निभाया था, जिससे मुझे आघात पंहुचा'' अधिकारी बोला !
'' साहब ! मैं समझा नहीं ? ''
'' ना तुम बारिश में कई दिनों से भीग कर ख़राब हो रहे फर्नीचर को महफूज़ जगह रखते और ना ही नया फर्नीचर खरीद की जो स्वीकृति मिली थी, वो ना निरस्त होती. अधिकारी ने लाल आँखें लिए प्रत्युत्तर दिया.
सुनील गज्जाणी
11 comments:
दोनों अच्छी लघुकथाएं। दूसरी लघुकथा में इस वाक्य ' ना ही नया फर्नीचर खरीद की जो स्वीकृति मिली थी, वो ना निरस्त होती.' को ऐसे लिखो - नए फर्नीचर की खरीद की जो स्वीकृति मिली थी, ना ही वो ना निरस्त होती.
"नए फर्नीचर की खरीद की जो स्वीकृति मिली थी, ना ही वो निरस्त होती." इस तरह होना चाहिए।
badiya laghukathaye...
हमारे आसपास की वास्तविकता को संजीदगी से जीती लघुकथायें।
बहुत खूब।
behtareen sunil jee..
सार्थक लघुकथाएँ...बहुत उत्तम!!
हकीकत को कितना सहज लिख दिया सुनील जी आपने ... लाजवाब लघु-कहानियां ...
aapki dono laghu kathaen kaphi achchha prabhav chhodti hain,sundar.
बहुत अच्छी कथाएं...
ऐसे न जाने कितनी कथाएं हमारे आस पास बिखरी पड़ी हैं...
आप चुन कर लाये..आपका आभार...
अनु
समाज की विकट परिस्थिति का यथार्थ चित्रण है आपकी लघुकथाओ में .....................
सार्थक लघुकथाएँ
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