सुनील गज्जाणी की दो लघुकथाएँ
नई कास्टयूम
सभागार में मौजूद भीड़ में बेहद उत्सुकता थी। भीड़ मे चर्चा का विषय था चर्चित फैशन डिजाइनर की आज नई फीमेल कास्टयूम का प्रर्दशन होना। हाई सोसायटी वाली महिलाए अपने बदन दिखाऊ भड़कीले कपड़े पहने ज्यादा उत्साहित थी। कुछ समय पश्चात् डिजाइनर अपनी नई कास्टयूम डिजाईन पहने महिला मॉडल के साथ कैटवॉक करते मंच पे आ गया। पूरा सभागार भौचक्का रह गया तालियाँ आघी अधूरी बज कर रह गई। कैमरों की फ्लैशें एक बार थम सी गई। सभागार में कानाफूसियां गूंजने लगी। ये क्या नई कास्टयूम है, ऐसी क्या हमारी सोसायटी में पहनते है, क्या बुद्धि सठिया गई। पब पार्टियों में क्या ये कास्टयूम पहन कर जाएगे हम लोग। वे महिलाएं आपस मे बड़बड़ाती हुर्ह सभागार से बाहर निकलने लगी। पारम्परिक कॉस्ट्यूम चुन्नी से माथा ढंका सलवार सूट पहने नजरें नीची किए मॉडल के साथ डिजाईनर अभिवादन मुद्रा में खड़ा था।सुनील गज्जाणी
चुनाव
गृहमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र में एक कुख्यात अपराधी गुट और पुलिस दल के बीच जबरदस्त गोलीबारी हुई। इस गोली बारी मे गुट के कुछ साथियों के साथ सरगना व कुछ पुलिस वाले भी मारे गए। टी.वी. पे खबर देख गृहमन्त्री बेहद व्यथित हो गए खाना बीच में छोड़ दिया।‘‘क्या हुआ अचानक आपको, जो निवाला भी छोड़ दिया। राज्य मे आज से पहले भी ऐसी कई बार घटना हुई है, जिसे कभी आपने इतने मन से नही लिया।'' पत्नी बोली।
‘‘ऐसी घटना भी तो मेरे साथ पहली बार हुई है।''
‘‘मैं समझी नहीं।''
‘‘जो सरगना मरा है, उसी के दम पे तो मैं चुनाव जीतता आया हूँ।'' गृहमन्त्री जी हाथ धोते बोले।
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13 comments:
bahut sahi vyangya likha hai . yahi satya hai .
priya Sunil jee aapki dono laghu kathaen aaj ke samay par gehra chhot karti hain.in behtareen rachnaon ke liye badhai.
सामयिक और सटीक शब्द-चित्रण!बधाई!
-'सुधि'
यथार्थ को जीती लघु कथायें।
दोनों लघुकथाएं अच्छी लगीं। कम शब्दों में बहुत कुछ कहती हुईं।
भोत जोरदार लघुकथावां ! बधाई सा !
via e mail
सुनील जी,
साधुवाद !
आपकी लघु-कथाएँ कम शब्दों में भीतर उतरकर बहुत से प्रश्नों को जन्म देती हैं ।
शुभकामनाएँ
प्रणव
via e mail dwaraa
आ० सुनील जी,
आपकी दोनों लघु कथाएँ समाज को आइना दिखाती हैं l
बहुत साधुवाद l
सादर,
कुसुम वीर
via e mail
Shukriya Sunil bhaai,
dono laghukathaayen achchhi hain, shayad aake hi blog par yakahin patr-patrika me pahle bhi padh chuka hoon.
Dipak Mashal
via e mail
आदरजोग सुनीलजी,
आपरै ब्लॉग ‘अक्षय मोती’ माथै आपरी दोय हिन्दी लघुकथा नई कास्ट्यूम अर
चुनाव बांची। आज रै तथाकथित अधुना समाज अर सूगली सियासत रै सांच नै सामी
लावंती सांतरी रचना। बधाई।
आपरो
महेन्द्र मील
दोनों ही लघुकथाएँ लघुकथा की भाषिक संरचना–संस्कार को निर्वहन करती हुई बेहतरीन और सशक्त है। सामाजिक और राजनैतिक सरोकारों के विकृति रूप और मौकापरस्ती पर एक करार प्रहार है। समकालीन लघुकथाकारों में अपना एक सुदृढ़ स्थान रखने वाले सुनील जी की कथाओं की खूबी है की वे अपनी सरल भाषा में गहरे तक धंस जाती हैं। दूसरी खूबी कहूं तो दृश्यात्मकता देखते ही बनती है मानो कथा के पात्र हमारे सामने चलचित्र के भाँती सदृश्य हो उठे हों। ढेरों सुभकामनाओं सहित आपकी लेखनी की धार को सलाम। सादर
लघु लेकिन वृहद सार है दोनों कथाओ में ...बधाई
सुनील भाई , आपकी लघुकथाओ में प्राण बसते है..
दिल खुश कर दिया ..
दिल से बधाई स्वीकार करे.
विजय कुमार
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